घर बैठे बेटियों ने बनाया अपने घर को आक्सीजन जोन!
बेटियों ने कहा कि एक किलोमीटर दूर तक जायेगी, शुद्ध हवाएं, आत्मनिर्भर एवं पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक कदम
संजय जैन / हटा / दमोह : कहते है कि वक्त से बढ कर कोई अनुभव प्रदान नहीं करता है, कोरोना ने जहां सांसो का मोल बता दिया वही कई लोग इससे सीख लेकर कई उन्नत कदम उठा रहे है, ऐसा ही कुछ कर दिखाया है एक छोटे से किसान की बेटियों ने जिन्होने अपने घर आंगन व खेत को आक्सीजन जोन में बदल दिया है।
नगर से मात्र दो किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत बोरीखुर्द के छपरा गांव में रहने वाले परम गंगारानी पटैल सब्जी का व्यवसाय करते है। उनकी पांच बेटियां व एक बेटा सबसे छोटा है। बडी बेटी चंदा पटैल ने वर्ष 2017 में हायर सेकेन्डरी परीक्षा में मेथस गुरूप से जिला में द्वितीय स्थान प्राप्त किया था। अभी सभी अध्ययनरत है, इस परिवार के पास एक एकड से भी कम जमीन है। विगत कई माह से स्कूल कालेज बंद होने के कारण अब पांचो बेटी चंदा, भागवती, रीता, कीर्ति, प्राची अपने छोटे से खेत को आक्सीजन जोन बना रही है, आम, जामुन, नीबू, अमरूद के पेड विरासत में मिले। अब इन्होने कटहल, नीबू, आंवला, पपीता, जामुन, मधुकामनी के नये पेड लगायें है। इसके साथ सुगन्धित फूल में गुलाब, गेंदा, जासुन, सेवंती आदि फूल भी लगाये है। इन सभी बेटियों का कहना है कि हमनें जो पेड पौधे लगाये है और जिन्हे संरक्षण दिया है। उससे एक तो हमारा घर आंगन पूरी तरह से आक्सीजन जोन बन जायेगा।
इसकी शुद्ध हवा आस पास करीब एक किलो मीटर तक फैलेगी। इसके साथ ही इन पेड पौधों से हमारे परिवार की आय में कुछ सहयोग मिलेगा। इन पौधों के लिए हमारे लिए किसी भी प्रकार की कोई सरकारी सहायता नहीं मिली न ही हमनें किसी बैंक से लोन लिया हैं। बस माता पिता को आर्थिक रूप से सशक्त कर रहे है, सभी स्वस्थ रहे, पर्यावरण का भी संतुलन बना रहे, इसी उद्देश्य से जो संसाधन है उन्ही का उपयोग कर रहे है।
हम बेटियां यह भी बताना चाह रहे कि किसी बैंक या सरकारी दफ्तर के चक्कर काटने से बेहतर होगा कि अपनी नींव को ही मजबूत किया जाये, बेटी कही बेटा से कम नहीं यह संदेश समाज को दे रहे है। पांचो बेटी खेत में सुबह से करीब एक से लेकर दो घंटा प्रतिदिन कार्य करती है, जो थोडी सी जमीन है उसी पर कुछ सब्जी का भी उत्पादन कर रही है। चंदा, भागवती, रीता ने बताया कि बरसात के दिनों में यहां नाले के माध्यम से पूरा पानी बह जाता है। जिसके कारण गर्मी के दिनों में पानी की समस्या होती है। जलस्तर बहुत ही नीचे चला जाता है, यदि यहां से निकलने वाले नाले पर श्रृंखलाबद्ध छोटे छोटे स्टापडेम बन जाये तो गांव का जलस्तर स्थिर रह सकता है, और हम सब गर्मी में भी कुछ फसल पैदा कर सकते है।