चित्र नहीं चरित्र को जीवन में उतारो – श्री बागेश्वर धाम सरकार
हटा / दमोह :शतं विहाय भोक्तव्यं सहस्त्रं स्नानमाचरेत्। लक्षं विहाय दातव्यं कोटि त्यक्त्वा हरिं भजेत्।। सौ काम छोड़कर भोजन कर लेना चाहिए, हजारों काम छोड़कर स्नान करना चाहिए, लाख काम छोड़कर पहले दान देना चाहिए और करोड़ काम छोड़कर पहले परमात्मा का भजन स्मरण और भागवत कथा का श्रवण करना चाहिए यह संयोग ही होता है कि भक्त को कथा के लिए उसे यहां तक ले आते है, यह बात देवश्री गौरीशंकर मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में श्री बागेश्वर धाम सरकार ने अपने मंगल प्रवचन में कही।
श्री सरकार ने कबीर के दोहा यह तन विष की बेल री, गुरु अमृत की खान, शीश दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान । गुरू का कोई मोल नहीं होता वह सदैव अनमोल होता है, गुरू का ऋण अपना शीश देकर भी नहीं चुकाया जा सकता है, अगर जीवन में कभी आभाव लगे तो गोविन्द के प्रभाव में आ जाना, क्योकि जब हम उनके भरोसे रहते है तो हमारे दुख सुख की चिंता भी वही करते है, व्यवसाय में घाटा मुनाफा की टेंसन नौकर को नहीं रहता वह सब मालिक के भरोसे कर देता है ठीक उसी प्रकार अपनी जिन्दगी की डोर भी जब मालिक गोविन्द ही सम्हालें हो तो भी किस बात की चिंता, श्री सरकार ने कहा उपदेश देना सरल है, सुनना भी सरल है लेकिन उस पर अमल करना कठिन होता है, ग्वालिन का दृष्टांत सुनाते हुए कहा कि जिसकी कथा सुनकर राधे श्याम पर विश्वास के साथ ग्वालिन नदी के पानी पर चलने लगती है वही महराज उस पानी में डूबने लगते है, भव सागर से पार होना है तो विश्वास उसकी पहली सीढी होती है।
श्री सरकार ने कहा कि श्रीमद भागवत कथा का आनंद रसिक या भावुक व्यक्ति ही ले सकता है, रसिक भागवत रस में डूब जाता है वही भावुक व्यक्ति भावना में डूब कर कथा का श्रवण करता है, लेकिन वर्तमान में तो लोग कथा सुनने कम समय पास करने ज्यादा आते है, कुछेक तो केवल फोटो ही लेते रहते है, सेल्फी के लिए कितनी मेहनत करते है भले ही उन्हे कितनी बार धक्का देकर बाहर किया जाये, भाईया चित्र नही चरित्र को जीवन में उतारो व्यास गद्दी से जो कहा जाये उसका अनुशरण करो, कथा सुनने की सार्थकता तभी है जब आप उसके अनुसार चलो, कथा सुनने, कथा करने वाले के भी व्रत धर्म नियम होते है, भागवत कथा सुनकर धुंधकारी जैसे लोग का भी उद्धार हो गया। उन्होने कथा सुनाने वालों को भी नियम व्रत का पालन करना चाहिए, वेदशास्त्रों का अध्ययन किया हो, ऐसे दृष्टांत दे सके जो आमजन समझ सके, श्री सरकार ने अंतिम संस्कार में फूल, बताशा और पैसा फैकने को बताया कि फूल इसलिए फैके जाते कि आपका परिवार अच्छे से फले फूले, बताशा इसलिए फैकते कि परिवार में मिठास बनी रही और पैसा इसलिए फैक कर परिवार के लोग बताते है कि पूरी जिन्दगी पैसो के चक्कर में लगा रहा, दिन रात एक कर दिया ले अब हम ये पैसा तुम्हारी छाती पर फेंक रहे उठा सके तो उठा लें, धन धन के चक्कर में ही निधन हो गया।
श्री सरकार ने अभिभावकों को प्रेरित करते हुए कि अपने बेटा बेटियों की संगत पर नजर रखो उन्हे रोको टोको वरना पूरा बुढापा अनाथालय में गुजारना पडेगा, बेटा बेटियों को कथा का श्रवण करने लेकर जाना चाहिए, रामायण पढाना चाहिए, ताकि वे संस्कारित हो, प्रात:काल उठी के रघुनाथा, मातु पिता गुरु नावहि माथा इसका उल्लेख रामायण में है, ऐसी शिक्षा ही बेटा बेटी को संस्कारित करती है, जिनके मां बाप होते है वो बहुत ही भाग्यशाली होते है, आजकल तो मोबाईल संस्कृति आ गई, जब देखो अंगूठा चलता ही रहता है, यदि विज्ञान तरक्की कर रहा है तो उसका उपयोग हो दुरूपयोग नहीं होना चाहिए। कथा का श्रवण करने दूर दूर से श्रद्धालु आये हुए थे।