बेटी के सिर से उठ गया पिता का साया, बेटा नहीं होने के कारण मुखाग्नि देकर फर्ज निभाया!
बेटी ने दी पिता को मुखग्नि, बेटी ने कंधा देकर पिता को बिदा किया, पुत्र न होने पर बेटी ने ही निभाया बेटे का फर्ज
संजय जैन / हटा दमोह : सरकार बेटी पढाओं, बेटी बचाओं जैसे अभियान चलाकर बेटी का महत्व बता रहे है, वही नगर के वरिष्ठ पत्रकार एवं कुरीतियों के विरूद्ध सदैव शंखनाद करने वाले समाज सेवी रवीन्द्र अग्रवाल की इकलौती बेटी ने अपने पिता के निधन पर परिवार को बेटा न होने की कमी का अहसास नहीं होने दिया. वरन बेटी ने ही अपनेे पिता की अर्थी को मुखाग्नि देकर बेटेे का फर्ज निभाया.
अखबार जगत से 45 वर्ष से जुडे रवीन्द्र अग्रवाल विगत दो माह से गंभीर रूप से बीमार थे, बीमारी के दौरान उन्हे उनकी बेटी माइक्रोबायोलांजी से पीएचडी की छात्रा सारिका अग्रवाल उच्च इलाज हेतू जबलपुर ले गई. जहां दो माह तक भूख प्यास नींद को दरकिनारे करते हुए दिनरात पिता की सेवा की, जिन्दगी से जंग लड रहे रवीन्द्र अग्रवाल का 7 फरवरी को निधन हो गया. 8 फरवरी को उनका अंतिम संस्कार हटा में हुआ. जहां सारिका ने समाज के वरिष्ठजनों एवं पंडितों से विचार विमर्श कर अंतिम संस्कार के सारे क्रियाकर्म स्वयं करने की इच्छा रखी, जिसे सभी ने सहमती दे दी.
अंतिम संस्कार के दौरान जो सारे कार्य बेटे के द्वारा संपादित किये जाते है, उसे बेटी ने ही समाज एवं पंडितों के निर्देशन में पूरे किये, पिता की अंतिम यात्रा जब घर से प्रारंभ हुई तो कंधा भी दिया, श्मशान घाट पर जाकर, पिण्डदान, मुखग्नि, जलचाप एवं तिलांजलि जैसे कार्य भी करायें.
बेटा न होना कोई अभिशाप नहीं होता, लेकिन बेटी होना सौभाग्य होता है. यह संदेश समाज, नगर और देश को देने का प्रयास सारिका के द्वारा किया गया है.